|| गायत्री चालीसा ||
|| दोहा ||
ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचण्ड |
शांति क्रांति जागृति प्रगति रचना शक्ति अखण्ड ||
जगत जननी मंगल करनि गायत्री सुखधाम |
प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम ||
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी | गायत्री नित कलिमल दहनी ||
अक्षर चौबिस परम पुनीता | इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता ||
शाश्वत सतोगुणी सतरूपा | सत्य सनातन सुधा अनूपा ||
हंसारूढ़ श्वेतांबर धारी | स्वर्ण कांति शुचि गगन बिहारी ||
पुस्तक पुष्प कमण्डल माला | शुभ्रवर्ण तनु नयन विशाला ||
ध्यान धरत पुलकित हिय होई | सुख उपजत दुःख दुरमति खोई ||
कामधेनु तुम सुर तरु छाया | निराकार की अद्भुत माया ||
तुम्हरी शरण गहै जो कोई | तरै सकल संकट सों सोई ||
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली | दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ||
तुम्हरी महिमा पार न पावै | जो शरद शतमुख गुण गावैं ||
चार वेद की मातु पुनीता | तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ||
महामंत्र जितने जग माहीं | कोऊ गायत्री सम नाहीं ||
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै | आलस पाप अविद्या नासै ||
सृष्टि बीज जग जननि भवानी | कालरात्रि वरदा कल्याणी ||
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते | तुम सों पावें सुरता तेते ||
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे | जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ||
महिमा अपरंपार तुम्हारी | जय जय जय त्रिपदा भयहारी ||
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना | तुम सम अधिक न जग में आना ||
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा | तुमहिं पाए कछु रहै न क्लेशा ||
जानत तुमहिं तुमहिं ह्वै जाई | पारस परसि कुधातु सुहाई ||
तुम्हरी शक्ति दपै सब ठाई | माता तुम सब ठौर समाई ||
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे | सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ||
सकल सृष्टि की प्राण विधाता | पालक पोषक नाशक त्राता ||
मातेश्वरी दया व्रत धारी | तुम सन तरे पातकी भारी ||
जापर कृपा तुम्हारी होई | तापर कृपा करें सब कोई ||
मंद बुद्धि ते बुद्धि बल पावें | रोगी रोग रहित ह्वै जावें ||
दारिद मिटै कटै सब पीरा | नाशै दुःख हरै भव भीरा ||
ग्रह क्लेश चित चिन्ता भारी | नासै गायत्री भय हारी ||
सन्तति हीन सुसन्तति पावें | सुख संपत्ति युत मोद मनावें ||
भूत पिशाच सब भय खावें | यम के दूत निकट नहिं आवें ||
जो सधवा सुमिरें चित लाई | अछत सुहाग सदा सुखदाई ||
घर वर सुखप्रद लहैं कुमारी | विधवा रहें सत्य व्रत धारी ||
जयति जयति जगदंब भवानी | तुम सम और दयालु न दानी ||
जो सद्गुरू सों दीक्षा पावें | सो साधन को सफल बनावें ||
सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी | लहैं मनोरथ गृही विरागी ||
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता | सब समर्थ गायत्री माता ||
ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी | आरत अर्थी चिन्तित भोगी ||
जो जो शरण तुम्हारी आवें | सो सो मन वांछित फल पावैं ||
बल बुद्धि विद्या शील स्वभाऊ | धन वैभव यश तेज उछाऊ ||
सकल बढ़ें उपजें सुख नाना | जो यह पाठ करै धरि ध्याना ||
|| दोहा ||
यह चालीसा भक्ति युक्त पाठ करें जो कोय |
तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय ||